

गिद्ध, जो भारतीय पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम हिस्सा रहे हैं, आज लुप्तप्राय की श्रेणी में पहुंच चुके हैं। यह संकट मुख्यतः मानव द्वारा किए गए कुछ गलत कार्यों का परिणाम है, विशेषकर डायक्लोफोनक दवा के उपयोग का। लेकिन, बहराइच के कतर्नियाघाट से हाल में आई कुछ सकारात्मक खबरें इन चिताओं के बीच एक किरण की तरह हैं। हाल ही में एक सेमल के पेड़ पर एक दर्जन से अधिक गिद्धों की उपस्थिति ने वन्यजीव प्रेमियों में उम्मीद जगाई है।
सात साल पहले कतर्नियाघाट में गिद्धों की संख्या केवल 9 रह गई थी, जो दर्शाता है कि इन पक्षियों के लिए स्थितियां कितनी दयनीय थीं। डायक्लोफोनक दवा, जो दुधारू पशुओं को दी जाती है, जब ये पशु मरते हैं, तो गिद्धों के लिए खाद्य स्रोत का एक बड़ा नुकसान बन जाती है। इसके अतिरिक्त, बड़े पेड़ों की कमी, जैसे सेमल, बरगद, और अर्जुन, ने गिद्धों के लिए रहने की परिस्थितियों को और कठिन बना दिया था।

संरक्षण प्रयासों के चलते, चार साल पहले वन्यजीव संस्थान, वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ), और वन विभाग ने गिद्धों की जनसंख्या का अध्ययन करने के लिए 41 टीमें गठित कीं। इन टीमों ने GPS के माध्यम से गिद्धों की टैगिंग की और उनके चित्र एकत्रित किए। इस अध्ययन ने यह स्पष्ट किया कि तीन वर्षों में गिद्धों की संख्या 9 से बढ़कर 159 हो गई। हाल ही में, कतर्नियाघाट में गिद्धों की संख्या लगभग 200 हो गई है, जो एक अत्यंत उत्साहवर्धक संकेत है।
प्रभागीय वनाधिकारी बी शिव शंकर द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, अब भी एक ही पेड़ पर बड़ी संख्या में गिद्ध देखे गए हैं। कतर्नियाघाट में विभिन्न प्रकार के गिद्ध जैसे यूरेशियन ग्रिफॉन, रेड हेडेड (राज गिद्ध), सेनेरियस और इजिप्शन पूरे वर्ष पाए जाते हैं। सर्दियों में हिमालयन ग्रिफॉन भी यहां आने लगता है। गिद्धों को स्वच्छता कर्मी कहा जाता है, क्योंकि ये केवल सड़े-गले मांस का सेवन करते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में मदद मिलती है।

प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी अज़ीम मिर्जा का कहना है, “गिद्धों की बढ़ती हुई संख्या कतर्नियाघाट में न केवल एक सकारात्मक संकेत है, बल्कि यह उन संरक्षण प्रयासों का भी परिणाम है जो पिछले कुछ वर्षों में किए गए हैं। यदि हम अपने वातावरण और जीव-जंतुओं की सुरक्षा के लिए सक्रिय रहें, तो हम इस धरती के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रख सकते हैं। गिद्धों का संरक्षण और उनकी वृद्धि के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं। यह न केवल प्राकृतिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के अन्य घटकों के लिए भी आवश्यक है। आने वाले समय में यदि हम इस दिशा में सक्रिय रूप से कार्य करते रहें, तो निश्चित ही गिद्धों की संख्या में और भी इजाफा होगा।”
